रविवार, 20 जून 2010

नज़र

नज़रों को कोई वहम नहीं,
हमें तुमसे कोई गम नहीं।
मिटने दो आरजुओं को,
वफ़ा नहीं, कसम नहीं।

तुम्हारा मुझ पर करम नहीं,
याद मुझे कोई सितम नहीं।
हम ही हार जाते हैं लो,
आज किसी पर जुलम नहीं।

अब रास्तों का भरम नहीं,
मंज़िल हमारी तुम नहीं।
किन आंसुओं से रोवोगे,
दीन नहीं, धरम नहीं।

वादे वो अब कायम नहीं,
इसका कोई मातम नहीं।
हम ही बहक गए थे दोस्त,
गलत तुम्हारे कदम नहीं।

सफ़र-ऐ-ज़िन्दगी अभी ख़त्म नहीं,
तमन्ना जीने की भी कम नहीं।
तमाम नमी अभी आँखों में हैं,
पीने को ख़त्म शबनम नहीं।