नींद मुझे कब आती है?
नयनों से दूर है उसका वास,
किंचित नहीं स्वप्निल आभास,
बस एक अकेला मन मेरा,
एक स्मृति जिसमे भरमाती है।
नींद मुझे कब आती है?
मैं दिन भर चलता-फिरता हूँ,
हर क्षण में सौ पल गिनता हूँ,
किन्तु समय कि रेखा तो,
बस दूरी ही और बढाती है।
नींद मुझे कब आती है?
हर सहर मैं जाता नयी डगर,
आशाओं की झोली भर-भर,
फिर लम्बी हो जाती परछाई,
दिन ढलता रात आ जाती है।
नींद मुझे कब आती है?
इस बार करूंगा फिर प्रयास,
सपने बुन लूँगा आस-पास,
अँधियारा तो छाया है,
पर दृष्टि दूर तक जाती है।
नींद मुझे कब आती है?
सुख की घड़ियाँ, दुःख का त्रास,
नहीं तुषार, पर ज्वलंत प्यास,
नीर चक्षु से निकले तो भी,
अब आग कहाँ बुझ पाती है।
नींद मुझे कब आती है?
सुख की घड़ियाँ, दुःख का त्रास,
जवाब देंहटाएंनहीं तुषार, पर ज्वलंत प्यास,
नीर चक्षु से निकले तो भी,
अब आग कहाँ बुझ पाती है।
बहुत भावपूर्ण रचना ...अच्छी प्रस्तुति
संगीता जी , आपको बहुत बहुत धन्यवाद्. बस ऐसे ही मनोबल को बढ़ाते रहिये.
जवाब देंहटाएंसंगीता जी, आपका अत्यंत धन्यवाद्. कृपया मुझे बताएं की मुझे क्या करना होगा? मैं अगले दो दिनों तक नेट पैर आ न सकूंगा. मुझसे क्या अपेक्षा है इस मंच हेतु वह बताएं.
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंसत्येन जी ,
जवाब देंहटाएंइस मंच पर आप आ कर देखिये ..आप बहुत लोगों के लिंक्स पायेंगे ...इस मंच का उद्देश्य है कि जिन रचनाकारों तक लोंग नहीं पहुँच पाते उन तक लिंक दे कर लगों को पहुँचाया जा सके ..और अच्छी रचनाओं कि जानकारी दी जा सके ...आपको जब भी वक्त मिले आप नीचे दिए लिंक पर एक बार अवश्य देखें...और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ ..
http://charchamanch.blogspot.com/2010/10/19-297.html
इस बार करूंगा फिर प्रयास,
जवाब देंहटाएंसपने बुन लूँगा आस-पास,
अँधियारा तो छाया है,
पर दृष्टि दूर तक जाती है।
apko pahli baar padha bahut acchhi rachna.
बहुत अच्छा लगा पढ़कर.
जवाब देंहटाएं