बुधवार, 15 जनवरी 2014

यह देखा मैंने...


अवसान   हुआ  जब  आशाओं का, तो   रंग  तुम्हारे देखे। 
छल, छद्म, मिथ्या, प्रवंचना,  जीवन के अंग तुम्हारे देखे।

झूठी   थाप   बजाने  वाले   वक्रित  मिरदंग  तुम्हारे देखे।  
कंग  खंग  गंग  घंग  चंग  छंग,  सब   ढंग   तुम्हारे देखे।

मुख    में  राम    बगल   में  छुरी,   सत्संग   तुम्हारे देखे।
खंडित    जीवन   वाद्य   और   नर्तन   नंग  तुम्हारे देखे।

स्वप्नों  की  तो  बात  ही  छोड़ो  जो मैंने संग तुम्हारे देखे।
विस्मित  हो  सत्य  को जाना, विचार बदरंग तुम्हारे देखे।

न्यून   हुआ   नव - परिभाषित,  दायरे   तंग  तुम्हारे देखे।
संवेदित  संकेत  किये जब, प्रति-संवेदन भंग तुम्हारे देखे।

नव आस  कहाँ से जग पाती जो  मंडराते भृंग तुम्हारे देखे।
मुझको खो कर सब पाना है, अभिलाषा - श्रृंग तुम्हारे देखे।
 

मंगलवार, 7 जनवरी 2014

ऐसा नहीं

कोई  मुझको  चाह  ले ऐसा नहीं।
मेरे  ग़म  की  थाह  ले ऐसा नहीं।
 
मुश्किलात  हासिल हैं  हर वक़्त,
दिल  थोड़ा  कराह  ले ऐसा नहीं।

मैं उसको चाहता हूँ दिलोजान से,
मुझको भी वो चाह ले ऐसा नहीं।

इंकलाब के ख़यालात मुझमें भी हैं,
हुक़ूमत मुझसे सलाह ले ऐसा नहीं।

सिधाई  अभी  भी  बची  है काफ़ी,
सिर्फ़  टेड़ी  ही  राह  ले ऐसा नहीं।

मेरी आँखों में गहरायी नहीं शायद,
वो मेरे दिल की  थाह ले ऐसा नहीं।

छोड़  दिया  अब  आदमी के भरोसे,
ख़ुदा हिसाब-ए-ग़ुनाह ले ऐसा नहीं।

दिक्कतें   मेरे  साथ   भी   हैं   कई,
सब  मुझसे   निबाह  ले ऐसा नहीं।

शामियाने ज़िन्दगी के उखड़ गए,
अब  कोई   पनाह  ले  ऐसा  नहीं।

मैं  भी  कुछ अपनी पसंद रखता हूँ,
जो चाहे मिला निग़ाह ले ऐसा नहीं।