आज सब हार जाने को जी चाहता है।
गुल नहीं खार पाने को जी चाहता है।
सब तरफ बिखरा दूँ जो भी है संवरा हुआ,
समंदर का ज्वार होने को जी चाहता है।
जबसे संभाले हैं पाँव बहते जा रहे हैं,
दरिया नहीं कनार होने को जी चाहता है।
मुझे ले चले और गुमराह कर दे कहीं,
सुलेमानी कालीन उड़ाने को जी चाहता है।
चुप रहने की आदत मैंने भी डाल ली अब,
लफ़्ज़ों के पार रहने को जी चाहता है।
जो सुलगता हो एहसासों का धुआं जिगर में,
सरापा इक तूफ़ान उठाने को जी चाहता है।
अब सन्नाटे से कर ली हैं मोहब्बत मैंने,
तेरी आवाज़ भूल जाने को जी चाहता है।
तूने रुख मिलाया तो आँखें चौंधियाती रहीं,
मेरा अब पलकें खोलने को जी चाहता है।
शुकराना पढता हूँ कि तलब ख़त्म कर दी तूने,
इक सीधी सी ज़िन्दगी जीने को जी चाहता है।
गुल नहीं खार पाने को जी चाहता है।
सब तरफ बिखरा दूँ जो भी है संवरा हुआ,
समंदर का ज्वार होने को जी चाहता है।
जबसे संभाले हैं पाँव बहते जा रहे हैं,
दरिया नहीं कनार होने को जी चाहता है।
मुझे ले चले और गुमराह कर दे कहीं,
सुलेमानी कालीन उड़ाने को जी चाहता है।
चुप रहने की आदत मैंने भी डाल ली अब,
लफ़्ज़ों के पार रहने को जी चाहता है।
जो सुलगता हो एहसासों का धुआं जिगर में,
सरापा इक तूफ़ान उठाने को जी चाहता है।
अब सन्नाटे से कर ली हैं मोहब्बत मैंने,
तेरी आवाज़ भूल जाने को जी चाहता है।
तूने रुख मिलाया तो आँखें चौंधियाती रहीं,
मेरा अब पलकें खोलने को जी चाहता है।
शुकराना पढता हूँ कि तलब ख़त्म कर दी तूने,
इक सीधी सी ज़िन्दगी जीने को जी चाहता है।
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