शनिवार, 27 नवंबर 2010

गम

उठने दो गम और उमड़ने दो आंसू,
आये हैं मेहमां मैं पलकें बिछा लूं।
दिखता नहीं कुछ ये कैसा असर है,
आँखों के भीतर नज़र ही नज़र है।
देखूं जिसे वो नज़ारा नहीं है,
दिखता है जो वो हमारा नहीं है।

ढूँढो ऐ नज़रों उन्हें पास लाओ,
हालत पे मेरी ना तुम मुस्कराओ।
उठने दो गम और उमड़ने दो आंसू,
आये हैं मेहमां मैं पलकें बिछा लूं।