बुधवार, 2 मार्च 2016

ऐसा ना कर


तमगा-ए-बेवफ़ाई  ले , तू ज़िक्र-ए-वफ़ादारियाँ  ना कर।  
कारोबार-ए-उल्फत  में यूँ  काला - बाज़ारियाँ  ना कर।

पर्दादारियाँ   हैं    तेरे    दिल -ओ - ज़ेहन    में   बहोत, 
मेरे    ईमां    से   खेलने    की     नादानियाँ  ना   कर।

सच्चाइयाँ   ही    जीतती     हैँ    आदमी   का    दिल,
फरेब   का   सहारा  ले  कर    बदग़ुमानियाँ  ना  कर।  
  
किसने  बोये  हैं शज़र  और   किसने  बिछायें  हैं काँटे,
इन्हे  पोशीदा  रहने  दे,  अब  और  रुसवाईयाँ ना कर।   

तू    दोस्त  था   कभी   इस  वास्ते   मशविरा  है तुझे,
शबनम    और   आग    की     रुबकारियाँ   ना   कर।

माना  कि  हमने  हारी  हैं लड़ाइयाँ अब तक की सभी,
मौला  सब  की  खैर  करे , तू   फ़ौज़दारियाँ  ना  कर।  

तंगदिल औ' संगदिल,  दिलों  की पैमाईशें करने लगें, 
ख़ुदा   का   ख़ौफ़  खा,   ऐसी   गुस्ताखियाँ  ना  कर। 

भरम न खुल जाये इन सामरी आँखों की शातिर अंदाज़ी का,
रिश्तों  की  खैर  मनाओ,  घड़ियाली  अश्क़बारियाँ  ना  कर।

वो  जो  मेरा  खज़ाना  गर  मेरे  रब ने  मुझे  अता  फ़रमाया , 
तू  क्यूँ  परीशां  है ऐ  दोस्त,  तिलिस्मी पहरेदारियां ना कर।  
     

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें