ऐसा नहीं कि हमें तुमसे कोई शिक़ायत नहीं।
पर इक इस बात से खफा होना हमारी रवायत नहीं।
ज़िन्दगी का सफ़र क्या? चंद रोज़ में कट जायेगा,
और ऐसा भी नहीं कि हम पर किसी की इनायत नहीं।
हर सिम्त खा कर ठोकरें भी, देंगे ना बददुआ कभी,
बेगैरत भी जी लेंगे, तुमसे ऐसी कोई अदावत नहीं।
झुक कर चलने वाला ही उठा कर सीने से लगाया जाता है,
तन कर चलते रहने में कहीं कोई महारत नहीं।
रंगीन ख्वाबों का काँच तो चटक कर टूटता ही है,
और इस काँच के टुकड़े से घायल होना कोई नज़ाकत नहीं।
औरों को पिछाड़ कर आगे निकलना एक बात है,
किसी का सीना चाक कर दो, ये तो शराफ़त नहीं।
जब उरूज़ पर हो तो भूल जाओ, मुफलिसी में याद करो,
इसे कोई और नाम देना, यक़ीनन ये मोहब्बत नहीं।
अपने ज़ख्मों को नुमाइश का सामां मत बनाओ ऐ शायर,
हर लफ्ज़ जो करे बयां दर्द-ए-दिल तो ये सदाकत नहीं।
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