पुराने उन सारे वादों को,
खट्टी - मीठी सबरी यादों को,
उजले दिन, सुहानी रातों को,
कही-अनकही सारी बातों को,
इस बार होली में सब कर दिया दहन मैंने।
जीवन में जो भी अब अभिव्यक्त हो,
शुष्क हो, आर्द्र, शीतल या तप्त हो,
भग्न हो, बिखर जाये कि विन्यस्त हो,
यह मेरा प्रारब्ध , तुम इससे मुक्त हो।
इस बार होली को एकला किया वहन मैंने।
जीवन के विराट से कुछ कण बीन लाने हैं,
ईश्वर भी राह रोके, वह क्षण छीन लाने हैं,
साहस, संकल्प, संयम, जीवन के तीन माने हैं,
काल की गति वही जो हम कर्म में लीन ठाने हैं।
इस बार होली में भाग्य का कर दिया ज्वलन मैंने।
विधान स्वयं गढ़ेंगे, त्रिकाल हम पढ़ेंगे,
चौसर का खेल बंद, अंधता नहीं सहेंगे,
तेग पर धार देंगे, भविष्य नया रचेंगे,
उऋण होने हेतु ही जीवन पथ पर चलेंगे।
इस बार होली पर यह व्रत किया वरण मैंने।
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