बुधवार, 15 जनवरी 2014

यह देखा मैंने...


अवसान   हुआ  जब  आशाओं का, तो   रंग  तुम्हारे देखे। 
छल, छद्म, मिथ्या, प्रवंचना,  जीवन के अंग तुम्हारे देखे।

झूठी   थाप   बजाने  वाले   वक्रित  मिरदंग  तुम्हारे देखे।  
कंग  खंग  गंग  घंग  चंग  छंग,  सब   ढंग   तुम्हारे देखे।

मुख    में  राम    बगल   में  छुरी,   सत्संग   तुम्हारे देखे।
खंडित    जीवन   वाद्य   और   नर्तन   नंग  तुम्हारे देखे।

स्वप्नों  की  तो  बात  ही  छोड़ो  जो मैंने संग तुम्हारे देखे।
विस्मित  हो  सत्य  को जाना, विचार बदरंग तुम्हारे देखे।

न्यून   हुआ   नव - परिभाषित,  दायरे   तंग  तुम्हारे देखे।
संवेदित  संकेत  किये जब, प्रति-संवेदन भंग तुम्हारे देखे।

नव आस  कहाँ से जग पाती जो  मंडराते भृंग तुम्हारे देखे।
मुझको खो कर सब पाना है, अभिलाषा - श्रृंग तुम्हारे देखे।
 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें