करते हुए हम आज तुमको स्मरण,
आह्लादित हैं कि जो हो रहा नव-स्फुरण;
किस रूप में किसके पड़ रहे ये नव-चरण,
नमन विधाता को, प्रफुल्लित आज अंतःकरण।
समय के चक्र ने फिर धूप ये खिलायी है,
गवाक्षों से छन कर यह धवल किरण आयी है;
हो ना हो तुम्ही हो यह छवि जो झिलमिलायी है?
प्रकाश को बिखेरने नयी रश्मि जगमगायी है।
अनंत अभिसिंचित प्रसन्नता के आयाम हैं,
उल्लास से भरे हुए दंड, प्रहर, याम हैं;
एक बस अवकाश है जो आपके नाम है,
आपकी स्मृतियों को हम सब का प्रणाम है।
नव राह नव कोपलों से हो सुसज्जित सर्वदा,
यही रही है इस प्रकृति कि कथा, प्रथा सर्वथा;
नव अंकुरण हो पल्लवित, विकसित हो वह सदा,
इस आशय का आशीष ही आप दो हे श्रीदा !
मंगलवार, 29 मार्च 2011
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