तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी ऐसे हौले से मोड़ती है।
कभी सरापा लबरेज़, कभी खूं तक निचोड़ती है।
हयात उतरती है किसी के सीने में जब,
रगों में खून नहीं एक उम्मीद दौड़ती है।
गेसुओं को अपने चेहरे पर ले आती है,
शर्मा कर जब वो खुद अपनी लट ओढ़ती है।
तुम्हारी यादें क्या - क्या कर गुजरती हैं,
दिल थामती हैं तो कभी सांसों से जोड़ती हैं।
वो कहते हैं कि ये सब शायराना शगल हैं,
सच कहा, बेख़ुदी हकीक़त में कब छोड़ती है।
मैं सजा लेता हूँ गुलदस्ते तुम्हारी यादों के,
फुरकत की आबोहवा मेरा दम तोड़ती है।
हाशिया, मेरे आराम की बेहतर जगह है,
फलक की गहमागहमी मुझे सिकोड़ती है।
तुमसे कोई शिकवा नहीं है मुझको,
तुम्हे छू के आयी हवा बहोत झिंझोड़ती है।
मेरी मुठ्ठी में है टूटा हुआ तेरी पलक का एक बाल,
मुन्तज़र हूँ कि कब कहकशां कोई तारा तोड़ती है।
कभी सरापा लबरेज़, कभी खूं तक निचोड़ती है।
हयात उतरती है किसी के सीने में जब,
रगों में खून नहीं एक उम्मीद दौड़ती है।
गेसुओं को अपने चेहरे पर ले आती है,
शर्मा कर जब वो खुद अपनी लट ओढ़ती है।
तुम्हारी यादें क्या - क्या कर गुजरती हैं,
दिल थामती हैं तो कभी सांसों से जोड़ती हैं।
वो कहते हैं कि ये सब शायराना शगल हैं,
सच कहा, बेख़ुदी हकीक़त में कब छोड़ती है।
मैं सजा लेता हूँ गुलदस्ते तुम्हारी यादों के,
फुरकत की आबोहवा मेरा दम तोड़ती है।
हाशिया, मेरे आराम की बेहतर जगह है,
फलक की गहमागहमी मुझे सिकोड़ती है।
तुमसे कोई शिकवा नहीं है मुझको,
तुम्हे छू के आयी हवा बहोत झिंझोड़ती है।
मेरी मुठ्ठी में है टूटा हुआ तेरी पलक का एक बाल,
मुन्तज़र हूँ कि कब कहकशां कोई तारा तोड़ती है।