रविवार, 7 फ़रवरी 2010

नयी सदियाँ

जीवन की टूटी लड़ियाँ हैं,
अनसुलझी कुछ कड़ियाँ हैं।
कही-अनकही एक-दो बातें,
ठहरी हुयी सी घड़ियाँ हैं।

एकाकी कुछ बतियाँ हैं,
स्मृति की फुलझड़ियाँ हैं।
झुकी कमर को दिये सहारा,
अन्त समय की छड़ियाँ हैं।

कुंठायें औ' विकृतियाँ हैं,
कैसी ये आकृतियाँ हैं?
रंग रहा न जीवन में,
आह! विकट स्थितियां हैं।

क्षीण सभी प्रस्तुतियां हैं,
मलिन मनस-अभिव्यक्तियाँ हैं।
प्राण सींचता नहीं कोई अब,
दंश बांटती सर्पिणियां हैं।

थिर संवेदित ध्वनियाँ हैं,
भ्रमित-चकित रागिनियाँ हैं।
अश्रु सूख गए बंद चक्षु में,
युग बदला नयी सदियाँ हैं।

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