अभी तक कहाँ थी वफ़ा की ये बातें?
गुमनाम था सब कैसी मुलाकातें?
एहसास हुआ है उनको नया-नया कुछ,
फिर रहे हैं अब वो नज़रें चुराते।
मासूम थे बहुत पर अब हैं सितमगर,
चले जाते हैं अब क़यामत ही ढाते।
ख्वाब उमड़ते हैं, शोले सुलगते हैं,
बढे जा रहे हैं वो जलते-जलाते।
कोई पूछे बदली हुयी है क्यूँ चाल,
चलते हैं अब वो क्यूँ लजाते-लजाते?
अब तक तो दायरा-ए-ख़ामोशी ही थी,
ठुमकते हैं अब वो गाते-बजाते।
ठहर जाती ज़िन्दगी इस मुकाम पर काश,
संग आपके हम भी हँसते-हंसाते।
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