सोमवार, 18 जनवरी 2010

आशा..

तूने ऐसे इसे तराशा है,
स्वरहीन प्रणय की भाषा है,
बलुका में हैं चित्र उकेरे,
करतल ध्वनि की आशा है?

हारी हुयी एक प्रत्याशा है,
खंडित-भंजित हर आशा है,
ढाला हमने स्वयं ही जिनको,
उन विपदाओं ने नाशा है।

जीवन संघर्षों की अभिलाषा है,
क्रूर नयी यह परिभाषा है,
एक रक्तबीज है प्रतिस्पर्धा,
और संहार युद्ध की भाषा है।

हर पल में एक निराशा है,
उससे निकली शत-आशा है,
चौरस्ते की चौपड़ पर, हाथ तेरे
नव-जीवन का नव-पासा है।

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