सोमवार, 4 जनवरी 2010
इतना ही...
अभी क्यूँ करता मेरा दिल रोने को।
तमाशे बाकी हैं अभी बहुत होने को।
अभी तो बस तुझे गले से लगाया था,
ज़िन्दगी में काफ़ी कुछ बचा है खोने को।
नज़रें उठा कर क्या देखें तुम्हे हम,
आँखों में बचा नही पानी भी रोने को।
घुटनों से पेट को दबा रखा है बामुश्किल,
कैसे कह सकते हो अभी तुम हमें सोने को।
अब दर्द मे कराह कोई निकले क्यूँ,
खून भी कहाँ बचा ज़ख़्म धोने को।
हमारे हाथ भर गये छालों से, लेकिन
नफ़रत के अँगारे फिर भी बचे हैं बोने को।
हसरतें कब तक तुम इसमे सजाओगे,
अब तो छोड़ो माटी के इस खलोने को।
पिछली यादें हमको ज़रा भी नही सताती हैं,
रौंद कर निकले थे हम उस सपने सलोने को।
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dil ki ghahraiyaon se nikli gazal lagti hai.
जवाब देंहटाएंsumita