मोहब्बत से लबरेज़ इबारत नही।
टूटे अरमानों की कोई इमारत नही।
दिल की गहराई से उठी सदा है,
किसी मनचले की शरारत नही।
मुझको ऐसी नज़रों से ना देखो सनम,
जिनमे हम पर ज़रा भी इनायत नही।
ना कहना तुम्हारा बड़ा लाज़िमी है,
आरिज़ो से होती बयाँ चाहत नही।
बेखौफ़ मोहब्बत भी राज़दारी चाहती है,
किसी दूसरे को दखल की दावत नही।
ठंडे ना हो जायें मोहब्बत के शोले,
तेवरों में तुम्हारे बग़ावत नही।
कायनात कर रही इस्तक़बाल तुम्हारा,
तेरे जलवों से किसी को भी राहत नही।
हवाओं को भेजा है तुमने रफ़्तार से,
दर्द-ए-पिन्हा भी मेरा अब सलामत नही।
परतवे माहताब भी मुझको जलाने लगी,
कहीं ये भी तुम्हारी मातहत नही।
पैमाइशें औ इम्तिहान तो बहोत आएँगे,
मुझको भुलाने की तुमको इजाज़त नही।
अपनी पनाहों से मुझको ना महरूम रखो,
अकेले चलने की अपनी अब आदत नही।
टूटे अरमानों की कोई इमारत नही।
दिल की गहराई से उठी सदा है,
किसी मनचले की शरारत नही।
मुझको ऐसी नज़रों से ना देखो सनम,
जिनमे हम पर ज़रा भी इनायत नही।
ना कहना तुम्हारा बड़ा लाज़िमी है,
आरिज़ो से होती बयाँ चाहत नही।
बेखौफ़ मोहब्बत भी राज़दारी चाहती है,
किसी दूसरे को दखल की दावत नही।
ठंडे ना हो जायें मोहब्बत के शोले,
तेवरों में तुम्हारे बग़ावत नही।
कायनात कर रही इस्तक़बाल तुम्हारा,
तेरे जलवों से किसी को भी राहत नही।
हवाओं को भेजा है तुमने रफ़्तार से,
दर्द-ए-पिन्हा भी मेरा अब सलामत नही।
परतवे माहताब भी मुझको जलाने लगी,
कहीं ये भी तुम्हारी मातहत नही।
पैमाइशें औ इम्तिहान तो बहोत आएँगे,
मुझको भुलाने की तुमको इजाज़त नही।
अपनी पनाहों से मुझको ना महरूम रखो,
अकेले चलने की अपनी अब आदत नही।
passionate gazal.
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