मेरे दर्द को इतना न बढ़ाओ कि एहसास रहे ही नहीं।
यूँ भी ना करो कि मैं ढूँढू ही नहीं दवा-ए-दर्द भी कहीं।
मेरी बेचारगी पर तरस खाओ, ये नहीं चाहता हूँ मैं,
मगर मेरी मोहब्बत की शिद्दत को समझो तो सही।
झूठी तसल्ली ना चाहिये, ये बात बिलकुल साफ़ है ,
रक़ीबों से अफ़साने गढ़ो, ये कतई बर्दाश्त नहीं।
मुझसे ख़तोकिताबत नहीं, दो बोल प्यार के भी बंद,
फिर तो हो चुका, ऐसे तो मोहब्बत बढ़ने से रही।
जो इकरार रखो मेरी बातों से तो मेरे संग आओ तुम,
जो बरक़रार रखो दूरियां तो फिर विसाल होगा कहीं?
यूँ नासमझ भी ना हो जो इल्तेजा-ए-ज़ुबां ना समझो,
बरास्ता मुझसे ही गुज़रो, मेरी बस एक दरकार यही।
कोई फैसला न किया है अब तक, यही एक उम्मीद है,
डरता हूँ मुझे धीरे-धीरे दूर करने की ये तरक़ीब तो नहीं।
मैं दूर हो नहीं सकता, यह बात जान लो तुम ठीक से सनम,
निबाह मुझसे ही होगा, आजमाइश-ए-दिल चाहे कर लो कहीं।