किस भाँति है मेरा प्रेम तुझे यह बात तू किंचित जान सखे !
प्रेम - विटप पर आकांक्षा के पुष्प फहरते।
हर पंखड़ी में अनगित नेह भाव मचलते।
नील, पीत, हरित, रक्ताभ सकल रंग उभरते।
नाना भावों को स्पंदित और मुखरित करते।
बलिहारी सारी सुषमा ज्योँ कर रही प्रेम प्रदान सखे !
इस भाँति है मेरा प्रेम तुझे यह बात अटल तू जान सखे !
अम्बर में श्यामल वारिद ले मृदुल वारि कण फिरता है।
चहुँ दिसि प्रेम की बरखा करने पागल हो - हो घिरता है।
कितनों के मन के भावों के अनुकूल रूप धर तिरता है।
हर प्रेमी के नयनों को उसके प्रियतम का चेहरा दिखता है।
कर सकता यह कोई शब्द व्यक्त? इस बात को तू पहचान सखे !
इस भाँति है मेरा प्रेम तुझे यह बात अटल तू जान सखे !
नदियों की धारा का संगम कुछ तो बात बताता है।
अर्पण, न्योछावर के बाद बचा कहाँ कुछ रह पाता है?
एक धार हो कर जब संगम, नद का प्रवाह बढ़ाता है।
तट पर रह कर कौन भला तब पुण्य अपना बिसराता है?
मध्य धार रह कर देने पर ही बढ़ता अर्घ्य का मान सखे !
इस भाँति है मेरा प्रेम तुझे यह बात अटल तू जान सखे !
पयोधि की जलराशि को जब शशि अपना भाल दिखाता है।
लहरों का उत्साह स्वयं ही कई गुना बढ़ जाता है।
निर्जन पड़े किनारों को आ सागर सजीव, नम कर जाता है।
नीर तीर से वापस जाता, तब क्या चन्द्र कुछ रोष जताता है?
आना, जाना, उठना, गिरना सब गति जग की है रख ध्यान सखे !
इस भाँति है मेरा प्रेम तुझे यह बात अटल तू जान सखे !
ह्रदय ह्रदय से बात कर रहा संदेसा यह पहचान सखे !
यूँ ही ना मिल गये हम-तुम, यह फलित योग का प्रमाण सखे !
गात दो और प्राण एक, इस भाव का धर कुछ भान सखे !
परिपूर्ण प्रेम से पात्र हमारा, अवकाश का क्या स्थान सखे !
तुझको अर्पण हैं भाव समस्त यह बात पूर्णतः जान सखे !
इस भाँति है मेरा प्रेम तुझे यह बात अटल तू जान सखे !
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