रविवार, 22 फ़रवरी 2015

रौशनी का हरकारा


मशालें     हाथों     में    और   दिलों   में   अँधेरा  है। 
दीयों    की    पनाहों   में    काला   सा   एक घेरा है ।  

सुनते     थे     कि    अँधेरा     रौशनी   से   डरता  है,
हैरां    हूँ    ये    देख   कर   चिराग    तले   अँधेरा है।  

सूरत-ए-हाल  बदलेंगे जब  जागेगा  अंदर का इन्सां,
बड़े   गहरे  तक  वहाँ  उस   ढीठ  नींद  का बसेरा है।   

आँधियाँ बुझा  ना  दे कहीं  रौशनी के कहारों की लौ, 
उस लौ पे हाथ मिला के  रखो वो कल का  सवेरा है।  

मेरी चाहत की आवाज़ को पहचान लेना वक़्त रहते,
मै   फ़ना   हो  जाऊँगा,  जहाँ  तन्हाइयों  का  डेरा है।  

बदलाव  के  हरकारे बाँटेंगे ज्यों पौ फटने का संदेसा , 
दिये आफताब बन कर खिल उठेंगे ये भरोसा मेरा है।  

इम्तिहान  मत  लेना  तुम  कलम  के  सिपाही  का,
वो   द   से   दवात   भी   है   और   ठ   से   ठठेरा है। 

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