शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015

पथ और पथिक


मै पथिक नहीं मै तो पथ हूँ।  

जीवन   की  राहों  पर  राही  तो  मिलते   जाते हैं।  
कुछ  खुद से  ही आते हैं,  कुछ को हम ले आते हैं।  
कुछ  पल हेतु   कोई, कुछ  सुदूर  साथ निभाते हैं।  
हल्की हो या कि गहरी सब छाप छोड़ कर जाते हैं।  

पर तुम यह सोचो पंथी किसके संग शपथ लूँ?
मै पथिक नहीं मै तो पथ हूँ।  

अलि  का  झुण्ड कली  पर तो  सदा से रहता आया है।  
अपने   शब्दों के  गुंजन  से  उसका  मन  भरमाया है।  
सींचा जिस जल की धारा ने उसने ही प्रेम निभाया है। 
निहित धरा में सच्चा प्रेमी कलि को पुष्प बनाया है।  

यौवनाकर्षण भ्रमरों का, पर अपनी मिट्टी से अटल तू।  
मै पथिक नहीं मै तो पथ हूँ।  

उड़ते  पंछी   ठाँव  देख  कर  सुस्ताने  रुक  जाते हैं।  
देवी का  गाँव  देख  कर  दस्यु   भी  शीश  नवाते हैं।  
अमराई  की   छाँव  देख कर  प्यासे  ताप मिटाते हैं। 
मेहँदी   भरे    पाँव  देख  कर   लोभ   सवाँरे जाते हैं।
  
पुण्य फलित कब होता हैं इसका कुछ निर्धारण कर तू।  
मै पथिक नहीं मै तो पथ हूँ।  

पथ  पर  सुमन - बेल  बिखरेगी,  कंटक  भी  कुछ  आएंगे।  
अंधड़   और  वर्षा  जब  होगी  कुछ   धूल - पंक  छा जायेंगे।  
पथ  शीतल  करते  विटप  भी  देखो  सूरज में  कुम्हलायेंगे।  
पुलिन हो पथ पर या कि रेत हो, तेरे  पग का भार  उठायेंगे।    

पथ  पर तू  विश्वास  जमा,  मत  पथिकों  को  वर  तू। 
मै पथिक नहीं मै तो पथ हूँ।  

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