सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

शुभकामना


नव  प्रवाह  आया,  लाया नयी  धारा।  
नभ  में  चमका  है  सुदूर  एक  तारा।  
न विजित हुआ कभी, तम सदा हारा।  
सरल   यह   सत्य  जाने  जग  सारा।  

नव प्रभात देगी  नया एक उजियारा। 
नव क्रांति  तोड़ेगी  भ्रान्ति  की कारा।  
द्युति को भी कभी किसी ने बिसारा? 
स्वर्णांकन ने सदा  दीप्ति को उभारा। 

नव  प्रपात  फूटेंगे अनेकों जल धारा। 
शीतल   होगा   हर   जलता  अंगारा।  
तपस्या  का  फल  मीठा और न्यारा। 
अनुग्रहीत   हो  ही  सबने  स्वीकारा।  

नव प्रयास   देंगे  अक्षुण्ड़ रस धारा।   
यह व्रत  एकमेव  मस्तक पर वारा। 
दिशाओं  ने पुनः  एक बार  पुकारा। 
 तत्पर  पथिक  ने पथ  को निहारा।  

नव पग  उठाये  जो, वह कभी ना हारा।
तिनके तक ने  दिया डूबते को  सहारा। 
संकल्प की  शक्ति ने साहस विस्तारा।  
शुभ  हो जीवन   आपका  और हमारा। 

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