जीवन - रण में तत्पर हूँ ले पूर्ण दीक्षा।
जय वरण करूंगा अस्वीकार सारी भिक्षा।
विश्वास अखंड है मेरा धारूँगा हरि इच्छा।
ऐसा भी क्या ? जो वांछित हो कर भी प्राप्य नहीं?
जीवन में संगीत ना हो, कदापि मुझे स्वीकार्य नहीं।
मेरी वाणी में ओज है यह रोदन का कोई काव्य नहीं।
मेरे गीतों को हर ले, यह किंचित भी सम्भाव्य नहीं।
सत्य पराजित होगा ? क्या यह ऐसा युग आया हैं ?
शशि को देख निशा में, दिनकर को किसने बिसराया है ?
मार्तण्ड की किरणों से खद्योत कभी लड़ पाया है ?
रश्मिरथी भानु के सम्मुख, छिन्न तारों तक की माया है।
मैं नहीं प्रस्तर सा, मुझमे धड़कता है ह्रदय।
चंद आघात न कर सकते कुछ मेरे भाव क्षय।
मेरे खड्ग पर धार नयी, चिर नूतन मेरा वय।
अश्वमेध का यज्ञ है ये, नहीं रुकेगा मेरा हय।
यह घोष है संग्राम का, बज गयी रणभेरी।
यह स्वयंवर है यदि तो विजय निश्चित है मेरी।
एक लकीर प्रभा की मिटा देती है कालरात्रि घनेरी।
मन में विश्वास अटल है जो फिर हो कैसी देरी ?
व्रत मान लिया, रण ठान लिया, यह जीवन मैंने बलिदान किया।
मछली की आँख को देखा और परछाईं से कुछ अनुमान लिया।
अपने संकल्पों को परखा मैंने, फिर देव तुम्हारा ध्यान किया।
अपने संकल्पों को परखा मैंने, फिर देव तुम्हारा ध्यान किया।
प्रत्यंचा पर डाला शर को और लक्ष्य का अपने संधान किया।
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